जब भाई बटे घर बटे दिल फटे
आज मैं आपको तारीख के पन्ने याद दिलाना चाहता हु. आज की किताब है।
१. फ्रीडम अत मिड नाईट
Freedom at Mid Night -
२. तमस
Tamas
३. खाक और खून
Khaq aur Khoon
४. इंडिया विंस फ्रीडम
India Wins Freedom
अगर हम चाहते की एक मुस्तकबिल रोशन हो , हमें चाहिए तारीख को समझे , दौर इ हाज़िर को समझे और मुस्तक़बिल की तैयारी करे।
१९४७ की वह रात का समझना जरूरी है।
आज जो दिल्ली का मंजर है वह रात इससे बहोत भयावह थी। खून क़त्ल और दंगे चारो तरफ थे।
ऐसे वक़्त में वह लोग अपना सब कुछ छोड़ कर एक आशियाने की तलाश में निकले थे। जो नहीं गए वह हम है.
कल हम रहे न रहे
इल्म और तारीख सीना बा सीना आगे जाते , यह पुराना दस्तूर है। यह अमानत मैं कलमबंद करके आप को दे रहा हु ताकि मेरे साथ दफ़न न हो जाये। शायद मेरी जनरेशन आखरी है जिन्होंने उन लोगो से सुना है जिन्होंने यह देखा है सहा है। मेरे नौजवान दोस्त और साथी जो आज ट्वीटर पैर है, शायद किसी ने यह नहीं सुना होंगे और पड़े होंगे।
एक नया सफर एक नयी मंज़िल के साथ इंसाफ की लड़ाई जारी रहनी चाहिए। हम रहे न रहे।
फ्रीडम at मिडनाइट - यह ब्रिटिश हुकूमत और गोरो आँख से देखा हुआ मंजर है। यह सच्चाई का एक हिस्सा है। सच्चाई इससे बहोत दूर है , हकीकत इससे बहोत दूर है, मगर यह उसकी एक कड़ी जरूर है। जब आप ऐसे पढ़ेंगे तो आपको लगेंगे की हालात क्या थे वक़्त की हुकूमत ने क्या सोचा और क्या हुआ। दिल्ली पंजाब बंगाल सब कुच्च जल उठा था। इस अंगार लगायी थी आधी रात का वो फैसला जब पंजाब की तकसीम बदल दी गयी।
तमस - यह पंजाब की तारीख है। कम्युनिस्ट ने लिखी है। यह सच की अगली कड़ी है। खास तौर पे जब हालात ख़राब होई और कत्ल गारडगारी शुरू हो गयी उस वक़्त जिस तरह मेहनत की है उसे काबू में लाने के लिए कम्युनिस्टों ने यह कबीले तारीफ है। अपने मकसूल वसाइल और तादाद के बावजूद इस कोशिश को सलाम पेश है। यह सीरियल दूरदर्शन पर दिखाया गया है, आधा सच है। यह हक़ीक़त की दूसरी कड़ी है।
खाक और खून हिंदुस्तान में नहीं मिलती थी। जो पाकिस्तान से आते तो ले आते थे। इसकी फोटोकॉपी बिकती थी। अब ज़माना बदल गया। ऑनलाइन आप सकते है। पीडीऍफ़ मौजूद है। यह नावेल है, यह मुस्लिम आँखों से देखा हुआ है। आप पड़े तो यह ध्यान रखे यह नावेल तारीख है। आधी सच है। यह माज़ी है। आप बदल नहीं सकते। यह सिर्फ हालत को समझने और आने वाले वक़्त के फैसलों के लिए है। आपने ज़ज्बात को काबू में रखे। जो १९४७ उसकी सजा आज के लोग नहीं दे सकते। यह भी आधा सच है पढ़िए।
जो मंज़र हमने मालिआना आसाम , भागलपुर , मेरठ , बाबरी मस्जिद , गुजरात और हाल ही में दिल्ली में देखा यह ऐसी कड़ी का हिस्सा है। पढ़िए सम्भालिये और आगे के लिए सोचिये.
इस कड़ी की आखरी किताब है इंडिया विंस फ्रीडम , मौलान अबुल कलाम आज़ाद.
अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के सबसे लम्बे समय तक सदर रहे। आज़दी के सबसे मुश्किल और सबसे अहम् वक़्त में वो सदर थे। उनकी सब लोगो लेके चलने की सलाहियत यह उनका सबसे बड़ा सरमाया था। बहोत ज़हीन और और खुश मिज़ाज थे। उनकी सुनाने और बर्दाश्त करने की कूवत काबिले इ तारीफ थी। उनोहने यह ज़िम्मेदारी बगैर किसी ख्वाहिश और मफद के पूरी की। जब यह किताब लिखी गयी इसके तीन पैन महफूज़ रखे गए , और वसीयत की इसे इंतकाल के ३० साल बाद शाया किया जाये। सचाई सामने आये और किसी को शर्मिंदगी न हो। मौलाना सबसे अहम् दौर के हर फैसले के गवाह और शरीक थे। जिस दिन यह किताब शाया होइ मैंने उसी रोज़ खरीद के पड़ी थी। यहाँ तक की मैंने पहले सर्वोदय बुक स्टाल पे की मेरी कॉपी रखना।
मौलान की ज़हनियत की यह सबूत है उनकी सौराह फातिहा की तफ़्सीर २५० सफो की है। रब और रब्बुल आलमीन का बयान मैंने आजतक जो पढ़ा सबसे बेहतर है। तक़वा बाँदा और आक़ा के बीच का मामला है। बंदा और आका जाने , मैं सिर्फ वह लिखूंगा जिस मैं जनता हु।
मौलाना आज़ादी के बाद पहले एजुकेशन मिनिस्टर ( वज़ीर तालीम ) बने। मैं मानता हु आज तक सबसे बेहतरीन वज़ीर तालीम है। मजूबत बुनियाद मौलाना राखी आज उसी की वजह हमारा तालीमी निज़ाम महफूज़ है और संघियो से तमाम कोशिशो के बावजूद वो खड़ा है। पहली एजुकेशन पालिसी बनाने में उनका किरदार की तारीफ की जय कम है।
आज हमें मदरसा छाप कहते है मैं उनसे कहना चाहता हु ये तालीमी निज़ाम पालिसी और सिस्टम इसी मदरसे से आये लोगो ने दिया है। क्योंकि निज़ाम तालीम तस्सवुर सिर्फ मुसलमानो के पास था। पहले ४० सालो में मुसलमानो ने निज़ाम इ तालीम बनाने और चलाने में बहोत बड़ा योगदान रहा। एहि वजह है की संघी इसे बदलना चाहते है। क्योंकि तालीमी निज़ाम उनकी हिन्दू राष्ट्र बनाने कोशिशों में सब से बड़ी रुकावट है। यह निज़ाल तालीम इंसाफ और मसावात की बुनियाद पर बनाया गया है।
आप पढ़िए सोचिए यह आपका मुस्तक़बिल है। अब यह वतन आपका है। हम रहे न रहे।
तूफ़ान से लाये कश्ती निकालके अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।
आज मैं आपको तारीख के पन्ने याद दिलाना चाहता हु. आज की किताब है।
१. फ्रीडम अत मिड नाईट
Freedom at Mid Night -
२. तमस
Tamas
३. खाक और खून
Khaq aur Khoon
४. इंडिया विंस फ्रीडम
India Wins Freedom
अगर हम चाहते की एक मुस्तकबिल रोशन हो , हमें चाहिए तारीख को समझे , दौर इ हाज़िर को समझे और मुस्तक़बिल की तैयारी करे।
१९४७ की वह रात का समझना जरूरी है।
आज जो दिल्ली का मंजर है वह रात इससे बहोत भयावह थी। खून क़त्ल और दंगे चारो तरफ थे।
ऐसे वक़्त में वह लोग अपना सब कुछ छोड़ कर एक आशियाने की तलाश में निकले थे। जो नहीं गए वह हम है.
कल हम रहे न रहे
इल्म और तारीख सीना बा सीना आगे जाते , यह पुराना दस्तूर है। यह अमानत मैं कलमबंद करके आप को दे रहा हु ताकि मेरे साथ दफ़न न हो जाये। शायद मेरी जनरेशन आखरी है जिन्होंने उन लोगो से सुना है जिन्होंने यह देखा है सहा है। मेरे नौजवान दोस्त और साथी जो आज ट्वीटर पैर है, शायद किसी ने यह नहीं सुना होंगे और पड़े होंगे।
एक नया सफर एक नयी मंज़िल के साथ इंसाफ की लड़ाई जारी रहनी चाहिए। हम रहे न रहे।
फ्रीडम at मिडनाइट - यह ब्रिटिश हुकूमत और गोरो आँख से देखा हुआ मंजर है। यह सच्चाई का एक हिस्सा है। सच्चाई इससे बहोत दूर है , हकीकत इससे बहोत दूर है, मगर यह उसकी एक कड़ी जरूर है। जब आप ऐसे पढ़ेंगे तो आपको लगेंगे की हालात क्या थे वक़्त की हुकूमत ने क्या सोचा और क्या हुआ। दिल्ली पंजाब बंगाल सब कुच्च जल उठा था। इस अंगार लगायी थी आधी रात का वो फैसला जब पंजाब की तकसीम बदल दी गयी।
तमस - यह पंजाब की तारीख है। कम्युनिस्ट ने लिखी है। यह सच की अगली कड़ी है। खास तौर पे जब हालात ख़राब होई और कत्ल गारडगारी शुरू हो गयी उस वक़्त जिस तरह मेहनत की है उसे काबू में लाने के लिए कम्युनिस्टों ने यह कबीले तारीफ है। अपने मकसूल वसाइल और तादाद के बावजूद इस कोशिश को सलाम पेश है। यह सीरियल दूरदर्शन पर दिखाया गया है, आधा सच है। यह हक़ीक़त की दूसरी कड़ी है।
खाक और खून हिंदुस्तान में नहीं मिलती थी। जो पाकिस्तान से आते तो ले आते थे। इसकी फोटोकॉपी बिकती थी। अब ज़माना बदल गया। ऑनलाइन आप सकते है। पीडीऍफ़ मौजूद है। यह नावेल है, यह मुस्लिम आँखों से देखा हुआ है। आप पड़े तो यह ध्यान रखे यह नावेल तारीख है। आधी सच है। यह माज़ी है। आप बदल नहीं सकते। यह सिर्फ हालत को समझने और आने वाले वक़्त के फैसलों के लिए है। आपने ज़ज्बात को काबू में रखे। जो १९४७ उसकी सजा आज के लोग नहीं दे सकते। यह भी आधा सच है पढ़िए।
जो मंज़र हमने मालिआना आसाम , भागलपुर , मेरठ , बाबरी मस्जिद , गुजरात और हाल ही में दिल्ली में देखा यह ऐसी कड़ी का हिस्सा है। पढ़िए सम्भालिये और आगे के लिए सोचिये.
इस कड़ी की आखरी किताब है इंडिया विंस फ्रीडम , मौलान अबुल कलाम आज़ाद.
अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के सबसे लम्बे समय तक सदर रहे। आज़दी के सबसे मुश्किल और सबसे अहम् वक़्त में वो सदर थे। उनकी सब लोगो लेके चलने की सलाहियत यह उनका सबसे बड़ा सरमाया था। बहोत ज़हीन और और खुश मिज़ाज थे। उनकी सुनाने और बर्दाश्त करने की कूवत काबिले इ तारीफ थी। उनोहने यह ज़िम्मेदारी बगैर किसी ख्वाहिश और मफद के पूरी की। जब यह किताब लिखी गयी इसके तीन पैन महफूज़ रखे गए , और वसीयत की इसे इंतकाल के ३० साल बाद शाया किया जाये। सचाई सामने आये और किसी को शर्मिंदगी न हो। मौलाना सबसे अहम् दौर के हर फैसले के गवाह और शरीक थे। जिस दिन यह किताब शाया होइ मैंने उसी रोज़ खरीद के पड़ी थी। यहाँ तक की मैंने पहले सर्वोदय बुक स्टाल पे की मेरी कॉपी रखना।
मौलान की ज़हनियत की यह सबूत है उनकी सौराह फातिहा की तफ़्सीर २५० सफो की है। रब और रब्बुल आलमीन का बयान मैंने आजतक जो पढ़ा सबसे बेहतर है। तक़वा बाँदा और आक़ा के बीच का मामला है। बंदा और आका जाने , मैं सिर्फ वह लिखूंगा जिस मैं जनता हु।
मौलाना आज़ादी के बाद पहले एजुकेशन मिनिस्टर ( वज़ीर तालीम ) बने। मैं मानता हु आज तक सबसे बेहतरीन वज़ीर तालीम है। मजूबत बुनियाद मौलाना राखी आज उसी की वजह हमारा तालीमी निज़ाम महफूज़ है और संघियो से तमाम कोशिशो के बावजूद वो खड़ा है। पहली एजुकेशन पालिसी बनाने में उनका किरदार की तारीफ की जय कम है।
आज हमें मदरसा छाप कहते है मैं उनसे कहना चाहता हु ये तालीमी निज़ाम पालिसी और सिस्टम इसी मदरसे से आये लोगो ने दिया है। क्योंकि निज़ाम तालीम तस्सवुर सिर्फ मुसलमानो के पास था। पहले ४० सालो में मुसलमानो ने निज़ाम इ तालीम बनाने और चलाने में बहोत बड़ा योगदान रहा। एहि वजह है की संघी इसे बदलना चाहते है। क्योंकि तालीमी निज़ाम उनकी हिन्दू राष्ट्र बनाने कोशिशों में सब से बड़ी रुकावट है। यह निज़ाल तालीम इंसाफ और मसावात की बुनियाद पर बनाया गया है।
आप पढ़िए सोचिए यह आपका मुस्तक़बिल है। अब यह वतन आपका है। हम रहे न रहे।
तूफ़ान से लाये कश्ती निकालके अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।