Monday, March 30, 2020

जब भाई बटे घर बटे दिल फटे

जब भाई बटे घर बटे दिल फटे

आज मैं आपको तारीख के पन्ने याद दिलाना चाहता हु. आज की किताब है। 
१. फ्रीडम अत मिड नाईट
Freedom at Mid Night -
२. तमस
Tamas
३. खाक और खून
Khaq aur Khoon
४. इंडिया विंस फ्रीडम
India Wins Freedom

अगर हम चाहते की एक मुस्तकबिल रोशन हो , हमें चाहिए तारीख को समझे , दौर इ हाज़िर को समझे और मुस्तक़बिल की तैयारी करे।
१९४७ की वह रात का समझना जरूरी है। 
आज जो दिल्ली का मंजर है वह रात इससे बहोत भयावह थी।  खून क़त्ल और दंगे चारो तरफ थे। 
ऐसे वक़्त में वह लोग अपना सब कुछ छोड़ कर एक आशियाने की तलाश में निकले थे।  जो नहीं गए वह हम है.
कल हम रहे न रहे
इल्म और तारीख सीना बा सीना आगे जाते  , यह पुराना दस्तूर है।  यह अमानत मैं कलमबंद करके आप को दे रहा हु ताकि मेरे साथ दफ़न न हो जाये। शायद मेरी जनरेशन आखरी है जिन्होंने उन लोगो से सुना है जिन्होंने यह देखा है सहा है।  मेरे  नौजवान दोस्त और साथी जो आज ट्वीटर पैर है, शायद किसी ने यह नहीं सुना होंगे और पड़े होंगे। 
 एक नया सफर एक नयी मंज़िल के साथ इंसाफ की लड़ाई जारी रहनी चाहिए। हम रहे न रहे। 
फ्रीडम at मिडनाइट - यह ब्रिटिश हुकूमत और गोरो आँख से देखा हुआ मंजर है।  यह सच्चाई का एक हिस्सा है।  सच्चाई इससे बहोत दूर है  , हकीकत इससे बहोत दूर है, मगर यह उसकी एक कड़ी जरूर है।  जब आप ऐसे पढ़ेंगे तो आपको लगेंगे की हालात क्या थे वक़्त की हुकूमत ने क्या सोचा और क्या हुआ।  दिल्ली पंजाब बंगाल सब कुच्च जल उठा था।  इस अंगार लगायी थी आधी रात का वो फैसला जब पंजाब की तकसीम बदल दी गयी। 
तमस - यह पंजाब की तारीख है।  कम्युनिस्ट ने लिखी है।  यह सच की अगली कड़ी है।  खास तौर पे जब हालात ख़राब होई और कत्ल गारडगारी शुरू हो गयी उस वक़्त जिस तरह मेहनत की है उसे काबू में लाने के लिए कम्युनिस्टों ने यह कबीले तारीफ है।  अपने मकसूल वसाइल और तादाद के बावजूद इस कोशिश को सलाम पेश है।  यह सीरियल दूरदर्शन पर दिखाया गया है, आधा सच है।  यह हक़ीक़त की दूसरी कड़ी है। 
खाक और खून हिंदुस्तान में नहीं मिलती थी।  जो पाकिस्तान से आते तो ले आते थे।  इसकी फोटोकॉपी बिकती थी।  अब ज़माना बदल गया।  ऑनलाइन आप  सकते है।  पीडीऍफ़ मौजूद है।  यह नावेल है, यह मुस्लिम आँखों से देखा हुआ है।  आप पड़े तो यह ध्यान रखे यह नावेल तारीख है।  आधी सच है।  यह माज़ी है।  आप बदल नहीं सकते।  यह सिर्फ हालत को समझने और आने वाले वक़्त के फैसलों के लिए है।  आपने ज़ज्बात को काबू  में रखे।  जो १९४७  उसकी सजा आज के लोग नहीं दे सकते।  यह भी आधा सच है पढ़िए। 
जो मंज़र हमने मालिआना आसाम , भागलपुर , मेरठ , बाबरी मस्जिद , गुजरात और  हाल   ही में दिल्ली में देखा यह ऐसी कड़ी का हिस्सा है।  पढ़िए सम्भालिये और आगे के लिए सोचिये.
इस कड़ी की आखरी किताब है इंडिया विंस फ्रीडम , मौलान अबुल कलाम  आज़ाद.
अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के सबसे लम्बे समय तक सदर रहे।  आज़दी के सबसे मुश्किल और सबसे अहम् वक़्त में वो सदर थे।  उनकी सब लोगो  लेके चलने की सलाहियत यह उनका सबसे बड़ा सरमाया था।  बहोत ज़हीन और और खुश मिज़ाज थे।  उनकी सुनाने और बर्दाश्त करने की कूवत  काबिले इ तारीफ थी।  उनोहने यह ज़िम्मेदारी बगैर किसी ख्वाहिश और मफद के पूरी की।  जब यह किताब लिखी गयी  इसके तीन पैन महफूज़ रखे गए , और वसीयत की इसे इंतकाल  के ३० साल बाद शाया किया जाये।  सचाई सामने आये और किसी को शर्मिंदगी न हो।  मौलाना सबसे अहम् दौर के हर फैसले के गवाह और शरीक थे।  जिस दिन यह किताब शाया होइ मैंने उसी रोज़ खरीद  के पड़ी थी।  यहाँ तक की मैंने पहले  सर्वोदय बुक स्टाल पे की मेरी कॉपी रखना। 
मौलान की ज़हनियत की यह सबूत  है  उनकी सौराह फातिहा की तफ़्सीर २५०  सफो की है।  रब और रब्बुल आलमीन का बयान मैंने आजतक जो पढ़ा सबसे बेहतर है।  तक़वा बाँदा और आक़ा के बीच का मामला है।  बंदा और आका जाने , मैं सिर्फ वह लिखूंगा  जिस मैं जनता हु। 
मौलाना आज़ादी के बाद पहले एजुकेशन मिनिस्टर ( वज़ीर तालीम ) बने।  मैं  मानता हु आज  तक सबसे बेहतरीन वज़ीर तालीम है।  मजूबत बुनियाद मौलाना  राखी आज उसी की वजह हमारा तालीमी निज़ाम महफूज़ है और संघियो से तमाम कोशिशो के बावजूद वो खड़ा है।  पहली एजुकेशन पालिसी बनाने में उनका किरदार की  तारीफ  की जय कम है। 
आज  हमें मदरसा छाप कहते है मैं उनसे कहना चाहता   हु ये तालीमी निज़ाम पालिसी और सिस्टम इसी मदरसे से आये  लोगो ने दिया है।  क्योंकि निज़ाम तालीम  तस्सवुर सिर्फ मुसलमानो के पास था।  पहले ४० सालो में मुसलमानो ने निज़ाम इ तालीम बनाने और चलाने में बहोत बड़ा योगदान रहा। एहि वजह है की संघी इसे बदलना चाहते है।  क्योंकि तालीमी निज़ाम उनकी  हिन्दू राष्ट्र बनाने  कोशिशों में सब से बड़ी रुकावट है।  यह निज़ाल तालीम इंसाफ और मसावात की बुनियाद पर बनाया गया है। 
आप पढ़िए सोचिए यह आपका मुस्तक़बिल है।  अब यह वतन आपका है।  हम  रहे न रहे। 
तूफ़ान से लाये कश्ती निकालके अब तुम्हारे  हवाले वतन साथियो।  

Thursday, March 19, 2020

Demise of Shale Gas

OIL at 40 USD a Barrel is best of Global Economy
The burst of oil was long overdue. This is very good for global economy.
The Fake Shale Gas
Many experts have touted $50 as a threshold, the minimum the shale industry needs to break even. But in reality, it is more complicated. $50 is an average, and although some wells, in certain areas of the Permian, can break even at prices between $32 and $47 per barrel, other wells, even in the same areas, need as much as $65 to break even. Outside of the Permian region, breakeven prices are even higher.
Bloomberg New Energy Finance’s breakeven prices in the Permian range from $46 per barrel in Loving County to $87 per barrel in Reagan County.


Potential environmental considerations associated with shale gas
Shale gas extraction raises environmental concerns in relation to:
·        carbon dioxide (CO2) and methane (CH4) emissions, particularly the potential for increased fugitive CH4 emissions during drilling compared with drilling for conventional gas
·        the volumes of water and the chemicals used in fracking and their subsequent disposal
·        the possible risk of contaminating groundwater
·        the physical effects of fracking in the form of increased seismic activity

Shale gas 'worse than coal' for climate

Drawn from rock through a controversial "fracking" process, some hail the gas as a "stepping stone" to a low-carbon future and a route to energy security.
But US researchers found that shale gas wells leak substantial amounts of methane, a potent greenhouse gas. This makes its climate impact worse than conventional gas, they say - and probably worse than coal as well.


Oil price war sends US shale producers into survival mode

Already hard-pressed North American shale oil producers are contemplating a new round of spending and drilling cuts on Tuesday as they try to quell investor concerns about profitability in the wake of the oil price war unleashed by Saudi Arabia over the weekend.
Oil prices tanked by around a third on Monday after Saudi Arabia over the weekend slashed the price it charges for oil, sending a shock wave through an industry that had already been cutting costs since the 2014-2016 oil price collapse.
Research firm Rystad Energy predicted total industry spending on oil exploration and production would be cut by $100bn this year and another $150bn in 2021 if oil prices remained around $30 a barrel. The global benchmark was trading about $36.50 on Tuesday, up nearly six percent from Monday.
At the heart of the collapse in oil prices is the breakdown in the alliance between the Saudi-Arabia led OPEC and Russia, its most important ally.
Shale production has soared over the past eight years, pushing US output and exports to record highs, but that has come courtesy of strict production limits that the Saudis rolled back after the collapse of talks between OPEC and its allies last week.
"If these oil prices persist, the only real discussion is whether or not to continue operations in North American land," said Ian Bryant, Chief Executive Officer of Packers Plus Energy.
The Oil in the range of USD 30 is very bad news. That’s very bad news for Texas, North Dakota and anyone still left invested in oil and gas stocks. Shares of Chevron are down 20% in 2020, making it the best performing energy stock in America.  Most are down 30%, 40% or even 50% since January 1st.  The S&P Oil & Gas ETF (XOP) is down 33% this month.
The industry is facing a three-sided attack: falling prices, a move of institutional investors to divest from fossil fuel companies, and crushing debt loads.  
Debt is the problem. The U.S. oil and gas industry has about $86 billion of rated debt due in the next four years, according to Moody’s.  Nearly all of that debt is either junk rated, or rated just above junk. More simply put, if we fall to $25-$30 per barrel for an extended period of time, many traders and executives believe that stockholder pain will only get worse, and bankruptcy lawyers will be busy. 
What everyone does seem to agree on is that the shale industry, its employees and its remaining investors are going to experience very sharp pain in the near term.  A Capital IQ search shows that publicly traded oil and gas companies employ nearly 700,000 people.  That’s not including the millions more who work for private companies or in the halo of the industry.

 

The Shale Boom Is Becoming a Bust

The math is simple. If each new well drilled produces less than the earlier, and unprofitable, wells, then the peak is quickly approaching.

Negative cash flow
Bankruptcies are mounting across the sector, underlining a squeeze on funding. The money pipeline is running dry for large portions of the US shale oil sector, tipping drillers into bankruptcy and threatening the industry’s breathtaking growth in oil production.
As funding becomes scarce, bankruptcy filings are on the rise this year. Haynes and Boone, a law firm, counted 33 by the end of September, 27 of them since May, which is almost as many as in the whole of 2018. This month EP Energy filed for bankruptcy with $4.6bn in debt, citing “challenging dynamics as a result of depressed commodity prices.”
The story of indebted shale drilling is not a new one. For years, much of the shale industry was unprofitable and cash flow negative, but was able to finance aggressive drilling programs through a variety of means.
By some measures, this has led to some progress. After burning through around $200 billion in cash flow over the past decade, the top few dozen shale companies have come close to positive cash flow this year. In the second quarter, one study found that the top 29 shale companies posted slightly positive numbers, which was the best performance to date.
According to Rystad Energy, the top 40 companies spent $28 billion on capex in the first half of 2019, but only took in $23.7 billion in cash flow from operations


OPEC and Production Cut
Why Should OPEC Subsidize Shale Gas of US
By bringing down production or cutting production OPEC actually maintained Price tag so that, US Shale gas can keep producing. If OPEC kept their production, Shale can never survive the market competition

New Decade, New OPEC Oil Curbs. Same Mixed Results

OPEC+ reset the terms of its agreement as of Jan. 1. Half of the 10 OPEC countries now participating in supply cuts conformed last month, for a rate of 138%, according to Bloomberg calculations from the group’s secondary source data. Non-OPEC adherence was 76%, estimates from preliminary International Energy Agency data on crude supply show. Overall, the OPEC+ coalition had a compliance rate of 119%.

In recent years, OPEC+ has been forced to contend with rising American production and a trade war between the U.S. and China, both of which weighed on crude prices. Now there’s a third threat: the coronavirus outbreak, which has killed thousands in China while bringing the country to a halt. Chinese demand for oil products is likely to plunge by more than 35% year-on-year in the first quarter, Morgan Stanley said in a recent report, citing data from researchers at China oil giant CNPC.