Saturday, April 4, 2020

Women Empowerment


महिला सशक्तीकरण हिस्सा
( सचाई और तक़वा, हम्बल , पोलाइट , )

मैं आपको आज इतिहास के पन्नो से बताना चाहूंगा सचाई क्या होती है , कैसी बोली जाती है एंड सशक्तिकरण क्या होता है।  हुक्मरां हमारा नुमाइंदा है , जो हमारा मफाद के लिए सचाई के साथ काम करे.
उमर इब्न खत्ताब रजि अल्लाह उन्हे वक़्त के अमीरुल मोमिनीन और खलिफा थे, जिनकी हुकूमत उस वक़्त की आधी दुनिया पे थी। 
जुमे के रोज वह खुतबा दे रहे थे , खुतबे का मौजू था , मेहर ( वह हुकूक/पैसा/चीज़े ,  एक मर्द अपनी होनी वाली शरीक हयात को देता है ). औरते मेहर बहोत ज्यादा तलब करने लगी थी जिस की वजह से निकाह में मुश्किल रही थी। अमीरुल मोमिनीन इस को किसी तरह हद /limit  करना चाह रहे थे।  और खुतबे में उन्होंने फरमान जारी किया। उस वक़्त एक खातून उठी और कहा अमीरुल मोनिनिन ( रिवायत में आता है की उस खातून राजी अल्लाह ने कहा   उमर ) जिस चीज को अल्लाह और उसके रसूल सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम में मुतय्यन (Limit ) /हद नहीं की है , उसे करने वाले तुम कौन हो। यह हमारा हक़ है , हम चाहे माफ़ करे , चाहे जितने ले , तुम ऐसे मुतय्यन (Limit ) नहीं कर सकते। और वक़्त के अमीरुल मोमिनीन / खलीफा / बादशाह ने अपना फरमान वापस लिया। 
दूसरी मिसाल जुमा का खुतबा देने के लिए अमीरुल मोमिनीन उम्र इब्न खत्ताब राजी अल्लाह उन्हों मेमबर पर टरशरीफ लाये थे की एक खातून ने सवाल किया ( रिवायत यह भी  एक शख्स था) इसके पहले हम आपकी बात सुने आप मेरे सवाल का जवाब दो। और उस खातून ने सवाल किया , अमीरुल मोमिनीन आपका कुरता सब लोगो के कुर्ते से लम्बाई में ज्यादा कैसा है।  जो कपड़ा बैतूल माल ( ट्रेज़री) से मिला था वह काफी नहीं था।  उमर राजी अल्लाह उन्हों  बेटे अब्दुल्लाह बिन उम्र रजि अल्लाह उन्हों के तरफ इशारा किया की वह जवाब दे। अब्दुल्लाह बिन उमर खड़े हो कर कहा , मैंने मेरा हिस्से का कपड़ा अपने वालिद को दिया , क्योंकि जो कपड़ा मिला वह काफी नहीं था और हम दोनों में से किसी का कुरता नहीं बन रहा था। वह यह कहते हुए बैठ गई की सच्चे हो , अब हम तुम्हारी बात सुनेंगे।
मेरी अज़ीज़ बहनो और भाइयो , यह हमारा मयार ये सचाई रहा है , यह हमारे हुक्मरान का मयार है।  और यह हमारा तरीक़ा का ऐतेसाब ( सवाल करना, ऑडिट , पूछआना )  है।
जो लोग आज सशक्तिकरण की बात करते है उन्हें सबक लेने की ज़रुरत है।  मैं यह समझता हु, कमी हमारी है हमने पैगाम पहुंचाया ही हमारी ज़िन्दगी में लाया।  हम उम्मती सिर्फ मिलाद के लिए नहीं है , हम उम्मती इस दावत को, इस हक़ की आवाज को हर शख्स तक पहुंचने के किये है , एहि हमारी जिम्मेदारी है।
इस कड़ी तीसरा वाक़िअ है ,एक रोज उमर बिन खत्ताब राजी अल्लाह रास्ते से गुजर रहे थे तो एक उम्र रशीदा खातून  (बुढ़िया) ने रोका और कह उमर एक वक़्त था लोग तुम्हे उमर कहते थे  बकरिया चराया करते थे, अब तुम अमीरुल मोमिनीन बन गए हो , अपने रैय्यत (Population ) के मामले ने अल्लाह से डरते रहना  , और तवाजो से पेश आना (Balance ), इंसाफ करना , तो जो लोग उमर राजी अल्लाह उन्हे के साथ थे कहने लगे बुढ़िया तू  रोक कर अमीरुल मोमिनीन  के साथ जबान दराजी कर रही हो , तो वक़्त खलीफा , अमीरुल मोमिनीन बोल उठे , तुम जानते  खातून  कौन है, इनकी बात सातवे आसमान पे सुनी गई , उमर को तो पहले सुननी चाहिए।  यह खातून थी जिनके सवाल पे सौराह मुजादला नाज़िल होइ थी। 
यह वह किस्से है जो सशक्तिकरण , विमेंस empowerment की १४०० साल पुराणी  मिसाल है।

Wednesday, April 1, 2020

Sulataan Nooruddin Jangi


आग है , औलाद इ इब्राहीम है नमरूद है
क्या किसी को फिर किसी का इम्तिहान मक़सूद है
आज मैं आपको एक अज़ीम शख्सियत का तार्रुफ़ कराता हु।  जिन्हे मेरे और आपके प्यारे नबी सल्ललाहो आलिहि वस्सलाम का तीन मर्तबा दीदार हुआ ख्वाब में। 
सुलतान नूरुद्दीन जंगी, जिनका तक़वा , इबादत , शुजात , दीं की समझ और इल्म की फरासत बे मिसाल है।
आज भी हो इब्राहिम सा ईमान पैदा
आग कर सकती है अंदाज इ गुलिस्तां पैदा
लगभग आठ सौ साल पहले, सुल्तान नूरुद्दीन महमूद जंगी رَحَمَةُ اللهَ تَعَالَی عَلَيْه ने अपनी रात नवाफ़िल और वज़ैफ़ को हमेशा की तरह पेश किया और सो गए। जैसे ही उसकी आँखें बंद हुईं, उसका भाग्य जाग गया। पवित्र रसूल لَلَّى اللهَ تَعَالَ عَلَيْهٰ وَاِلَهٖ وَسَلَّم अपने सपने में आया, उसे दो नीली आंखों वाले आदमी दिखाए और कहा: मुझे उनसे बचाओ! वह رَحِمَةُ اللهَ تَعَال عی عَلَيْه उत्सुकता से उठा। उन्होंने वुडू का प्रदर्शन किया, नवाफिल की पेशकश की और फिर से सो गए। एक ही बात को तीन बार दोहराया। उन्होंने एक ही रात में अपने मंत्री को बुलाया। उन्होंने परामर्श किया और अगली सुबह मदीना मुनव्वरह के लिए बहुत सारी दौलत लेकर चले गए। वे 16 दिनों की यात्रा के बाद मदीना मुनव्वरह में पहुंचे। उन्होंने शहर के बाहर ग़ुस्ल किया और फिर शहर में प्रवेश किया। उन्होंने रियाद-उल-जनाह में नवाफिल किया, खुद को राउद-ए-रसूल ّىَلَص اللهُ تَعَالٰى عَلَيْهِ وَاَلٰهِ وَسَلَّم में पेश किया और मस्जिद के अंदर बैठ गए। मदीना के सभी निवासियों को यह सूचित करने के लिए बुलाया गया था कि सुल्तान आ गया है और उपहार वितरित करना चाहता है। हालांकि, वांछित लोगों को नहीं देखा गया था। पूछताछ करने पर, उन्हें बताया गया कि पश्चिम के दो धर्मी पुरुष हैं। वे किसी से कुछ नहीं लेते हैं। वास्तव में, वे सादकाह [दान] बहुतायत में देते हैं। वे पूरी रात आध्यात्मिक अभ्यास करते हैं और दिन के दौरान प्यासे लोगों को पानी चढ़ाते हैं। उन्हें सुल्तान के सामने पेश किया गया और उन्होंने तुरंत उन्हें पहचान लिया। वे वही शापित लोग थे, जिन्हें पवित्र रसूल ّىَلَّى اللهَ تَعَالَ عَلَيْهِ وَاٰلِهٖ وَسَلََم ने सपने में दिखाया था। जब उनसे मदीना पहुंचने के कारण के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि हम अभी हाल ही में बेलाव रसूल के पड़ोस में रहने आए हैं صَلَّى اللهُ تَعَالٰى عَلَيْْْ وَاٰلِهٖ وَسَلَّم

उनसे बार-बार पूछताछ की गई लेकिन उन्होंने सच्चाई उजागर नहीं की। जब उनके घर की तलाशी ली गई, तो अपार धन और कुछ किताबें मिलीं। सुल्तान उत्सुकता से टहलने लगा। अचानक, जैसे ही फर्श पर बिछाई गई चटाई को हटाया गया, हर कोई चटाई के नीचे एक सुरंग देखकर हैरान रह गया, जो कि प्यारे रसूल के रौद की ओर बढ़ रही थी दोनों अर्जित आदमी रात के समय सुरंग खोदेंगे और मिट्टी के जलप्रपातों को भरेंगे और कब्रिस्तान में फेंक देंगे। जब वे धन्य कब्र के पास पहुँचे, तो आकाश कांप गया और एक भयंकर भूकंप आ गया। ऐसा लग रहा था मानो पहाड़ गिर जाएंगे। सुल्तान नूरुद्दीन महमूद ज़ंगी رَحَمَةل اللهudd تَعَاللی عَلَيْه अगली सुबह मदीना मुनव्वरह पहुँचे। एक बार उनका अपराध सिद्ध हो जाने के बाद, सुल्तान ने उन्हें सिर कलम करने का आदेश दिया। इसके अलावा, उन्होंने आशीर्वाद राउदा के चारों ओर पानी के स्तर के लिए खोदी गई जमीन को पिघला दिया और उसमें पिघला हुआ सीसा डाला ताकि कोई भी इस तरह के बुरे काम को फिर से करने का प्रयास न कर सके। (वफ़ा-उल-वफ़ा, जुज़: २, पीपी ६४ sum; संक्षेप;)

प्रिय इस्लामिक भाइयों! रसूल के महान भक्त, इस्लाम के शेर, अबुल क़ासिम, नूरुद्दीन महमूद ज़ंगी رَحْمَةُ اللهِ تَعَالٰی علََيْه का पूरा जीवन दीन की सेवा में बीता। यही कारण है कि न केवल मुस्लिम इतिहासकार उनकी प्रशंसा करते हैं, बल्कि गैर-मुस्लिम इतिहासकार भी उनकी प्रशंसा करते हैं।

Monday, March 30, 2020

जब भाई बटे घर बटे दिल फटे

जब भाई बटे घर बटे दिल फटे

आज मैं आपको तारीख के पन्ने याद दिलाना चाहता हु. आज की किताब है। 
१. फ्रीडम अत मिड नाईट
Freedom at Mid Night -
२. तमस
Tamas
३. खाक और खून
Khaq aur Khoon
४. इंडिया विंस फ्रीडम
India Wins Freedom

अगर हम चाहते की एक मुस्तकबिल रोशन हो , हमें चाहिए तारीख को समझे , दौर इ हाज़िर को समझे और मुस्तक़बिल की तैयारी करे।
१९४७ की वह रात का समझना जरूरी है। 
आज जो दिल्ली का मंजर है वह रात इससे बहोत भयावह थी।  खून क़त्ल और दंगे चारो तरफ थे। 
ऐसे वक़्त में वह लोग अपना सब कुछ छोड़ कर एक आशियाने की तलाश में निकले थे।  जो नहीं गए वह हम है.
कल हम रहे न रहे
इल्म और तारीख सीना बा सीना आगे जाते  , यह पुराना दस्तूर है।  यह अमानत मैं कलमबंद करके आप को दे रहा हु ताकि मेरे साथ दफ़न न हो जाये। शायद मेरी जनरेशन आखरी है जिन्होंने उन लोगो से सुना है जिन्होंने यह देखा है सहा है।  मेरे  नौजवान दोस्त और साथी जो आज ट्वीटर पैर है, शायद किसी ने यह नहीं सुना होंगे और पड़े होंगे। 
 एक नया सफर एक नयी मंज़िल के साथ इंसाफ की लड़ाई जारी रहनी चाहिए। हम रहे न रहे। 
फ्रीडम at मिडनाइट - यह ब्रिटिश हुकूमत और गोरो आँख से देखा हुआ मंजर है।  यह सच्चाई का एक हिस्सा है।  सच्चाई इससे बहोत दूर है  , हकीकत इससे बहोत दूर है, मगर यह उसकी एक कड़ी जरूर है।  जब आप ऐसे पढ़ेंगे तो आपको लगेंगे की हालात क्या थे वक़्त की हुकूमत ने क्या सोचा और क्या हुआ।  दिल्ली पंजाब बंगाल सब कुच्च जल उठा था।  इस अंगार लगायी थी आधी रात का वो फैसला जब पंजाब की तकसीम बदल दी गयी। 
तमस - यह पंजाब की तारीख है।  कम्युनिस्ट ने लिखी है।  यह सच की अगली कड़ी है।  खास तौर पे जब हालात ख़राब होई और कत्ल गारडगारी शुरू हो गयी उस वक़्त जिस तरह मेहनत की है उसे काबू में लाने के लिए कम्युनिस्टों ने यह कबीले तारीफ है।  अपने मकसूल वसाइल और तादाद के बावजूद इस कोशिश को सलाम पेश है।  यह सीरियल दूरदर्शन पर दिखाया गया है, आधा सच है।  यह हक़ीक़त की दूसरी कड़ी है। 
खाक और खून हिंदुस्तान में नहीं मिलती थी।  जो पाकिस्तान से आते तो ले आते थे।  इसकी फोटोकॉपी बिकती थी।  अब ज़माना बदल गया।  ऑनलाइन आप  सकते है।  पीडीऍफ़ मौजूद है।  यह नावेल है, यह मुस्लिम आँखों से देखा हुआ है।  आप पड़े तो यह ध्यान रखे यह नावेल तारीख है।  आधी सच है।  यह माज़ी है।  आप बदल नहीं सकते।  यह सिर्फ हालत को समझने और आने वाले वक़्त के फैसलों के लिए है।  आपने ज़ज्बात को काबू  में रखे।  जो १९४७  उसकी सजा आज के लोग नहीं दे सकते।  यह भी आधा सच है पढ़िए। 
जो मंज़र हमने मालिआना आसाम , भागलपुर , मेरठ , बाबरी मस्जिद , गुजरात और  हाल   ही में दिल्ली में देखा यह ऐसी कड़ी का हिस्सा है।  पढ़िए सम्भालिये और आगे के लिए सोचिये.
इस कड़ी की आखरी किताब है इंडिया विंस फ्रीडम , मौलान अबुल कलाम  आज़ाद.
अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के सबसे लम्बे समय तक सदर रहे।  आज़दी के सबसे मुश्किल और सबसे अहम् वक़्त में वो सदर थे।  उनकी सब लोगो  लेके चलने की सलाहियत यह उनका सबसे बड़ा सरमाया था।  बहोत ज़हीन और और खुश मिज़ाज थे।  उनकी सुनाने और बर्दाश्त करने की कूवत  काबिले इ तारीफ थी।  उनोहने यह ज़िम्मेदारी बगैर किसी ख्वाहिश और मफद के पूरी की।  जब यह किताब लिखी गयी  इसके तीन पैन महफूज़ रखे गए , और वसीयत की इसे इंतकाल  के ३० साल बाद शाया किया जाये।  सचाई सामने आये और किसी को शर्मिंदगी न हो।  मौलाना सबसे अहम् दौर के हर फैसले के गवाह और शरीक थे।  जिस दिन यह किताब शाया होइ मैंने उसी रोज़ खरीद  के पड़ी थी।  यहाँ तक की मैंने पहले  सर्वोदय बुक स्टाल पे की मेरी कॉपी रखना। 
मौलान की ज़हनियत की यह सबूत  है  उनकी सौराह फातिहा की तफ़्सीर २५०  सफो की है।  रब और रब्बुल आलमीन का बयान मैंने आजतक जो पढ़ा सबसे बेहतर है।  तक़वा बाँदा और आक़ा के बीच का मामला है।  बंदा और आका जाने , मैं सिर्फ वह लिखूंगा  जिस मैं जनता हु। 
मौलाना आज़ादी के बाद पहले एजुकेशन मिनिस्टर ( वज़ीर तालीम ) बने।  मैं  मानता हु आज  तक सबसे बेहतरीन वज़ीर तालीम है।  मजूबत बुनियाद मौलाना  राखी आज उसी की वजह हमारा तालीमी निज़ाम महफूज़ है और संघियो से तमाम कोशिशो के बावजूद वो खड़ा है।  पहली एजुकेशन पालिसी बनाने में उनका किरदार की  तारीफ  की जय कम है। 
आज  हमें मदरसा छाप कहते है मैं उनसे कहना चाहता   हु ये तालीमी निज़ाम पालिसी और सिस्टम इसी मदरसे से आये  लोगो ने दिया है।  क्योंकि निज़ाम तालीम  तस्सवुर सिर्फ मुसलमानो के पास था।  पहले ४० सालो में मुसलमानो ने निज़ाम इ तालीम बनाने और चलाने में बहोत बड़ा योगदान रहा। एहि वजह है की संघी इसे बदलना चाहते है।  क्योंकि तालीमी निज़ाम उनकी  हिन्दू राष्ट्र बनाने  कोशिशों में सब से बड़ी रुकावट है।  यह निज़ाल तालीम इंसाफ और मसावात की बुनियाद पर बनाया गया है। 
आप पढ़िए सोचिए यह आपका मुस्तक़बिल है।  अब यह वतन आपका है।  हम  रहे न रहे। 
तूफ़ान से लाये कश्ती निकालके अब तुम्हारे  हवाले वतन साथियो।